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शनिवार, अगस्त 28, 2010

" मुक्ति प्रसंग "

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क्यूँ यह इक्षा होती है बार- बार
विभक्त हो जाऊ सैकड़ों टुकड़ों में
और एक ही समय , एक ही संग मौजूद रहूँ सैकड़ों देह के साथ
---जैसे कृष्ण ने किया कभी
काफ्का ने इक्षा की थी कभी....

क्या यह संभव है ?
या
"मुक्ति" अब भी एक संभावना है.......... रा. रं. दरवेश

3 टिप्‍पणियां:

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

स्वागत है...सुंदर पंक्तियां

अजय कुमार ने कहा…

हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

अनिल कान्त ने कहा…
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