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गुरुवार, अप्रैल 08, 2010

http://lh3.googleusercontent.com/_OFYGf44IBns/S4UXDBg6dEI/AAAAAAAAAHM/3f9shtxf4vk/Nirmal-Verma_7757.jpg 
""जब कभी निर्मल वर्मा को पढता हूँ, आभास होता है .......यज्ञ वेदी पर बैठा हूँ...........प्रज्वलित हवन की  ऊष्मा तील , जो , घी के पड़ते ही धीरे - धीरे अग्नि की तेज़ लपटों में तब्दील होती जा रही है.....पवित्र होती जा रही है .........मन्त्रों का शोर बढ़ता ही जा रहा है.....अन्दर की पवित्रता बाहर की उष्माओं  में घुलकर कहीं ले जा रही है......किसी अनंत की ओर.....आँखें बंद हो चुकी हैं और कहीं किसी कोने से एक आवाज़ आती है -- आह ! आज कितना कुछ पा लिया "".....
        साजिश
अधजली  लाश  नोचकर  
खाते  रहना  श्रेयस्कर  है 
जीवित  पडोसिओं  को  खा  जाने  से 
हम  लोगों  को  अब  शामिल  नहीं  रहना  है 
इस  धरती  से  आदमी  को  हमेशा  के  लिए  ख़त्म  कर  देने  की 
साजिश  में ......................
                                        ......राजकमल  चौधरी