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मंगलवार, जून 19, 2012

                                 एक पंक्षी रति पीड़ा में .....


...और प्याला छलक उठा...एक मरघट सी शांति...उदासी...पीड़ा...रति क्रीड़ा....

साभार-गुगल

" मेरे ओंठ भींगे हैं, दागदार हैं
    और मैं

   अपने बिस्तरे की गहराई में, अंधेरे में
   अपना परम्परागत पुरातन संस्कार
   गर्क कर लेने की अदा सीख चुका हूं...!!  ,,

मंगलवार, मार्च 13, 2012

मेरी यादों में नेपाल....

यह मार्च का महीना है...मेरे बसंत का मौसम..आज से एक साल पहले उनसे मुलाकात हुई थी... 
       
                                                       नेपाल की तराई में..एक छोटा सा गांव है- राजगढ़-6..भारत से दार्जलिंग होते हुए आखिरी सीमा आती है मेची कोली (नदी)..जो भारत और नेपाल की आधिकारिक सीमा रेखा है..वहां से बिर्ता मोड़ बाजार और फिर वहां से राजगढ़ गांव..नेपाल का यह गांव भारत के गांवों की तरह ही धूल-धक्कर से भरा हुआ है..आबादी के लिहाज से काफी छोटा है..एक छोटा सा बाजार है, जिसके चारों ओर लोगों के घर-बार हैं...थोड़ा-थोड़ा हट कर..जैसा आमतौर पर गांवों में होता है..वहीं बाजार क पास ही मेरे दोस्त का घर है..जिसके विवाह में मैं भारत से नेपाल गया था..भारत शब्द बार-बार सलिए याद आते हैं कि वहां के लोग मझे इंडियन बुलाते थे..जिंदगी में पहली बार अहसास हुआ कि विदेश में हूं..कभी –कभी अच्छा लगता था..लेकिन फिर बुरा लगने लगा..नेपाल और भारत में मैनें कभी कोई अंतर नहीं देखा था, अगर संप्रभुता की बात छोड़ दी जाय तो...कारण, नेपाल की सीमा से सटे इलाके में मैनें जिन्दगी तके कई बरस गुजारे हैं..लेकिन उत्तर-पूर्व का यह तराई इलाका वाकई में मेरे लिए एक अनदेखा जीवन रहा..
                                               
                                      ..जहां मेरे दोस्त का घर है..वहीं उसके पीछे से संकड़ी गली गुजरती है..उसके बाईं तरफ एक स्कूल है और दांयी तरफ दो कदम की दूरी पर एक छोटा-सा काठ का घर है..बिलकुल किसी चित्रकार के चित्र की भांति वो घर आज भी मेरी स्मृतियों में यूं ही जमी हुई है..स्टील फ्रेम...लेकिन यह स्टील फ्रेम तब टूट जाती है जब सुबह-सुबह एक खूबसूरत सी नहायी हुई लड़की अपने गीले बालों को तौलिये में लपेटे हुए दरवाजे से बाहर निकलती है..अंगराई लेती है..बाल झटकती है..और एक आराम कुर्सी में धंस जाती है...अपने हाथों को कुर्सी के पाये से टिका कर सर को इस तरफ घुमाती है...धूप की मिठी सी रौशनी फैल जाती है उसके चेहरे पर...उसकी बड़ी-बड़ी सी आंखें हवा में स्थिर हैं,...शायद सुबह का आलस है,..उसकी कमानीदार भंवे उपर उठती हैं और मुझे देखती हैं..आंखों में चंचलता तैर जाती है...धूप में नहाया हुआ उसका होठ..कितने गुलाबी हैं..उसके होठ फैल गये हैं..मुस्कुरा रही है..होठों के उपर से लेकर पुरे गाल पर, कान के नीचे तक हल्की-हल्की भूरे बालों की रवें दिख रही है..जाने क्यूं इतनी सुबह-सुबह एक मीठा पाप करने की इच्छा हो रही है...

                                      ...इच्छा...इच्छाएं...शायद कभी मरती नहीं हैं...और मुझे लगता है, यह देश, समाज, दुनिया से उपर की चीज है..तभी तो नेपाल के इस गांव में भी मेरी इच्छा मरी नहीं है, जाग रही है...और मैं इस पागल लड़की जिसका नाम मनीषा खरेल है, के घर के सामने वाले अपने दोस्त के घर की छत की मुंडेर पर बैठा हुआ सोच रहा हूं...इन इच्छाओं का क्या करुं....
                                     
..सुबह-सुबह दार्जलिंग के बगान की चाय पीती हुई यह अल्हड़ लड़की.. बड़ी पागल है..पागल...नहीं..नहीं..वो पागल
नहीं है..वह दूलरों को पागल बनाना जानती है...जाने क्यूं मुस्कुराये जा रही है....कल तो कह रही थी, मुझे इंडिया बहोत अच्चा लगता है...उसे हिन्दी नहीं आती है..लेकिन समझ जाती है..नेपाल के सभी घरों की तरह यह लड़की भी अपने टीवी चैनलों पर सारे हिन्दी कार्यक्रम देखती है...और कभी-कभी हिन्दी भी गाती है, मुझे चिढ़ाने के लिए..नजरें उठाकर..आंखों को गोल-गोल घुमाकर गाती है, पल ना माने टिंकू जिया.........फिर मुस्कुराने लगती है..खिलखिलाने लगती है...और बच्चों की तरह मासूम बनकर कहती है,हम इंडिया जाएगा..आप ले जाएगा..और फिर अपनी टूटी-फूटी हिन्दी पर हंस पड़ती है...फिर उसे कुछ कहने होता है, कहती है...लेकिन हिंदी में नहीं कह पाती है...नेपाली में बोलती है..और फिर यह देखकर कि मै नेपाली नहीं समझ रहा हूं...जोर-जोर से खिलखिलाने लगती है...

                                      ......जाने क्यूं, वह अल्हड़-पागल लड़की इतने दिनों बाद बहुत याद आ रही है...नेपाल से आती हुई बहती हवा आज भी उसकी मासूम हंसी की खिलखिलाहट अपने साथ ला रही है...नेपाल की उंची पहाड़ों से उपर उठता हुआ नेपाल का मादक दमाई संगीत..नेपाल की नदियां..नेपाल के घरों में बनने वाला बीयर...नेपाल के लोग...नेपाल की औरतें...नेपाल की मनीषा खरेल.......उफ्फ....यादें क्यूं आती है बार बार, मुझे रुलाने के लिए...............क्रमश :