Amazon

बुधवार, जून 01, 2016

अतीत के वो दिन

जून का तपता रेगिस्तान



आज जून के महीने की पहली तारीख है। यह महीना किसी रूठे हुए सनम की तरह मेरे लिए हमेशा ही बेदर्द रहा है। जून के इसी तपती गरमी में कमबख़्त मैं पैदा हुआ। साल का यही वो मौसम है जब किसी और मौसम के मुकाबिल मैंने खुद को बड़ा होते देखा और इसी मौसम में खुद को किसी मोम की तरह पिघलते हुए पाया। न जाने कितने दर्द... कितने गम दिए हैं इस महीने ने, जिसकी उमर इस मौसम से कई सालों लंबा रहा है।


....और आज एक बार फिर जून के इसी मौसम ने खुशियों का वह तकिया भी छीन लिया हमसे, जिस पर सर रखकर कभी रो लिया करते थे। अब तो बस्स्स... गम का बिछौना है और दूर तक फैली रेतीली, लंबी, उदास दिन-रातों का सिलसिला... ना जाने कितने दिन, महीने और बरसों तक यूं ही रहने वाला है....


....अतीत की साख से गिरे पत्ते...किसी पौधे की तरह हमारी सांसों में...हमारे दिल में फिर से उग जाया करती हैं और कटीली झाड़ियां बनकर सारी जिन्दगी दर्द का अहसास देती हैं....जिसे चाहकर भी हम ता-उमर कभी भूल नहीं सकते...