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क्यूँ यह इक्षा होती है बार- बार
विभक्त हो जाऊ सैकड़ों टुकड़ों में
और एक ही समय , एक ही संग मौजूद रहूँ सैकड़ों देह के साथ
---जैसे कृष्ण ने किया कभी
काफ्का ने इक्षा की थी कभी....
क्या यह संभव है ?
या
"मुक्ति" अब भी एक संभावना है.......... रा. रं. दरवेश
3 टिप्पणियां:
स्वागत है...सुंदर पंक्तियां
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