एक अंतहीन मुक्तिगाथा...
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निराला
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शुक्रवार, मई 07, 2010
जीवन और साहित्य
“….और , जीवन और साहित्य में ताश के एक ही पत्ते खेलने से पागलपन ना मिले , पीड़ाएँ ना मिलें , अकाल मृत्यु ना मिले , तो और क्या मिलेगा ??”
……….निराला
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