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सोमवार, जून 14, 2010
ज़िन्दगी एक मर्सिया ....
ज़िन्दगी जब ' कविता ' बन जाए .....मर्सिया बन जाती है .......मैं, मेरा मर्सिया खुद लिख जहा हूँ.......
बुधवार, जून 09, 2010
.......एक ऐतिहासिक त्रासदी
....भोपाल गैस कांड.......तारीखें...तारीखें .....और फिर पच्चीस बरस के बाद सुनवाई .........हमारे इतिहास की सबसे बड़ी त्रासदी है ., जो वर्तमान और भविष्य दोनों को ही अनसुलझे ' अतीत ' की तरह धीरे - धीरे ख़ामोश कर देना चाहती है .....साज़िश की दुर्गन्ध.....बहुत दूर जाएगी ......
शुक्रवार, जून 04, 2010
गुरुवार, जून 03, 2010
आत्मगाथा
बुशर्ट के फट जाने पर माँ सिल दिया करती थी ....अब दर्जी सिल दिया करता है .....लेकिन ज़िन्दगी के सपने चिंदी - चिंदी बिखरते जा रहे हैं ...ज़िन्दगी की नज्मों के उघडती हुई धागों को भला कौन दर्जी सिल देगा ........
बुधवार, जून 02, 2010
पत्रकारिता की नई तस्वीर
पत्रकारिता की नई तस्वीर देखने को मिल रही है ....नए- पुराने, खुद को 'journalist' कहने वाले लोग अपने हाथों में माइक लिए राजनितिक गलियारों में घूम रहे हैं ....राजधानी में खड़े हुए राजनेताओं के सड़े हुए बदरंग चेहरों की तस्वीरें और उनके उगले हुए हज़ारों बरस पुराने वक्तब्य बटोरते फिर रहे हैं ------- जाति, धर्म , शोषण , आरक्षण .....
वरयाम सिंह की एक कविता है......
''''आस्थाओं के उस दौर में
विश्वास था हमें
जो आगे चल रहा है ठीक ले जा रहा होगा .
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आज हम जहाँ पहुंचे
विश्वास नहीं होता हमें यही रास्ता यहाँ लाया है,
वही चेहरे हैं, वही चीजें है और वही सब कुछ
सिर्फ अप्रासंगिक हो गए लगते हैं कुछ शब्द
जैसे शोषण , अन्याय , असमानता, .........,,,,
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