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बुधवार, जून 02, 2010

पत्रकारिता की नई तस्वीर



पत्रकारिता की नई  तस्वीर देखने को मिल रही है ....नए- पुराने, खुद को 'journalist'  कहने  वाले लोग अपने  हाथों में माइक  लिए राजनितिक गलियारों में घूम रहे हैं ....राजधानी में खड़े हुए राजनेताओं के सड़े हुए बदरंग चेहरों की तस्वीरें  और  उनके उगले हुए हज़ारों बरस पुराने वक्तब्य बटोरते फिर रहे हैं ------- जाति, धर्म , शोषण , आरक्षण .....
वरयाम सिंह की एक कविता है......

''''आस्थाओं के उस दौर  में 
   विश्वास था हमें 
   जो आगे चल रहा है ठीक ले जा रहा होगा .

   ............
   ...........
  
 आज हम जहाँ पहुंचे 
   विश्वास नहीं होता हमें यही रास्ता यहाँ लाया है,
   वही चेहरे हैं, वही चीजें है  और वही सब कुछ
   सिर्फ अप्रासंगिक हो गए लगते हैं कुछ शब्द 
   जैसे शोषण , अन्याय , असमानता, .........,,,,

3 टिप्‍पणियां:

Dinesh pareek ने कहा…

कुछ लोग जीते जी इतिहास रच जाते हैं
कुछ लोग मर कर इतिहास बनाते हैं
और कुछ लोग जीते जी मार दिये जाते हैं
फिर इतिहास खुद उनसे बनता हैं
आशा है की आगे भी मुझे असे ही नई पोस्ट पढने को मिलेंगी
आपका ब्लॉग पसंद आया...इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी

कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-



बहुत मार्मिक रचना..बहुत सुन्दर...होली की हार्दिक शुभकामनायें!

Dinesh pareek ने कहा…

कुछ लोग जीते जी इतिहास रच जाते हैं
कुछ लोग मर कर इतिहास बनाते हैं
और कुछ लोग जीते जी मार दिये जाते हैं
फिर इतिहास खुद उनसे बनता हैं
आशा है की आगे भी मुझे असे ही नई पोस्ट पढने को मिलेंगी
आपका ब्लॉग पसंद आया...इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी

कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-



बहुत मार्मिक रचना..बहुत सुन्दर...होली की हार्दिक शुभकामनायें!

rrdarvesh ने कहा…

@ Dinesh pareek: shukriya dinesh j..