""जब कभी निर्मल वर्मा को पढता हूँ, आभास होता है .......यज्ञ वेदी पर बैठा हूँ...........प्रज्व
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गुरुवार, अप्रैल 08, 2010
""जब कभी निर्मल वर्मा को पढता हूँ, आभास होता है .......यज्ञ वेदी पर बैठा हूँ...........प्रज्व
बुधवार, मार्च 17, 2010
सुहानी रात
सुहानी रात का मंज़र बीता जा रहा है .......रात की सपनीली ज़वानी का नशा , सुबह की चमकीली रौशनी में टूट कर बिखर जाने को मजबूर है .......पास ही किसी ऑटो में बज रहे गाने की आवाज़ दूर तक फैलती जा रही है ......"सुहानी रात ढल चुकी ..ना जाने कब आओगे ".......मधुबाला की मदहोश आँखों का इंतज़ार दिल्ली की वीरान सडकों पर पसरने लगा है.....और आने वाली सुबह रात की वक्षों को धीरे धीरे सहला रही है.......
बुधवार, मार्च 10, 2010
उदास चेहरे
उदासी का अपना एक परिवेश है - - - - -कालचक्र है - - - - - अपनी स्थितियाँ है - - - - "उदास" शब्द कभी उदासी की जगह नहीं ले सकती है - - -
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