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बुधवार, मार्च 17, 2010

सुहानी रात

सुहानी  रात का मंज़र बीता जा रहा है .......रात की सपनीली ज़वानी का नशा , सुबह  की चमकीली रौशनी में टूट कर बिखर जाने को मजबूर है .......पास ही किसी ऑटो में बज रहे गाने की आवाज़ दूर तक फैलती  जा  रही है ......"सुहानी रात ढल चुकी ..ना जाने कब आओगे ".......मधुबाला की मदहोश आँखों का इंतज़ार दिल्ली की वीरान सडकों  पर पसरने लगा है.....और आने वाली सुबह  रात की वक्षों को धीरे धीरे सहला रही है.......    

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