सुहानी रात का मंज़र बीता जा रहा है .......रात की सपनीली ज़वानी का नशा , सुबह की चमकीली रौशनी में टूट कर बिखर जाने को मजबूर है .......पास ही किसी ऑटो में बज रहे गाने की आवाज़ दूर तक फैलती जा रही है ......"सुहानी रात ढल चुकी ..ना जाने कब आओगे ".......मधुबाला की मदहोश आँखों का इंतज़ार दिल्ली की वीरान सडकों पर पसरने लगा है.....और आने वाली सुबह रात की वक्षों को धीरे धीरे सहला रही है.......
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