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शुक्रवार, मई 07, 2010

जीवन और साहित्य

“….और , जीवन  और  साहित्य  में  ताश  के  एक  ही  पत्ते  खेलने  से  पागलपन  ना  मिले , पीड़ाएँ  ना  मिलें , अकाल  मृत्यु  ना  मिले , तो  और  क्या  मिलेगा ??”
                                        ……….निराला  

इच्छा


मैं जानती  हूँ   की  तुम्हे  इच्छा  हो  रही  है ,
मैं   जानती  हूँ   की  मुझे  भी  इच्छा  हो  रही  है ,
किन्तु ,
तुम्हें  पता  नहीं ,
सिर्फ  मुझे  पता  है  की  मैं  मासिक  धर्म  की 
रक्त  यंत्रणा  में  हूँ  .,,………
                                           .......….भूखी  पीढ़ी  की  कविता 

ख़ामोशी

मुझे पसंद  हैं 
    तुम्हारा  एहसास
    तुम्हारी खामोशी
    तुम्हारे जज़्बात
    तुम्हारा जिस्म   
     ...... पसीने की बू 

फिर, नापसंद क्या है ?
"रौशनी" !

प्लीज़, बत्ती बुझा दो 
दिल की आग धुआं होने को बाकी  है.....
                                                 ..... आर. आर. दरवेश  

गुरुवार, अप्रैल 08, 2010

http://lh3.googleusercontent.com/_OFYGf44IBns/S4UXDBg6dEI/AAAAAAAAAHM/3f9shtxf4vk/Nirmal-Verma_7757.jpg 
""जब कभी निर्मल वर्मा को पढता हूँ, आभास होता है .......यज्ञ वेदी पर बैठा हूँ...........प्रज्वलित हवन की  ऊष्मा तील , जो , घी के पड़ते ही धीरे - धीरे अग्नि की तेज़ लपटों में तब्दील होती जा रही है.....पवित्र होती जा रही है .........मन्त्रों का शोर बढ़ता ही जा रहा है.....अन्दर की पवित्रता बाहर की उष्माओं  में घुलकर कहीं ले जा रही है......किसी अनंत की ओर.....आँखें बंद हो चुकी हैं और कहीं किसी कोने से एक आवाज़ आती है -- आह ! आज कितना कुछ पा लिया "".....
        साजिश
अधजली  लाश  नोचकर  
खाते  रहना  श्रेयस्कर  है 
जीवित  पडोसिओं  को  खा  जाने  से 
हम  लोगों  को  अब  शामिल  नहीं  रहना  है 
इस  धरती  से  आदमी  को  हमेशा  के  लिए  ख़त्म  कर  देने  की 
साजिश  में ......................
                                        ......राजकमल  चौधरी 

बुधवार, मार्च 17, 2010

सुहानी रात

सुहानी  रात का मंज़र बीता जा रहा है .......रात की सपनीली ज़वानी का नशा , सुबह  की चमकीली रौशनी में टूट कर बिखर जाने को मजबूर है .......पास ही किसी ऑटो में बज रहे गाने की आवाज़ दूर तक फैलती  जा  रही है ......"सुहानी रात ढल चुकी ..ना जाने कब आओगे ".......मधुबाला की मदहोश आँखों का इंतज़ार दिल्ली की वीरान सडकों  पर पसरने लगा है.....और आने वाली सुबह  रात की वक्षों को धीरे धीरे सहला रही है.......    

बुधवार, मार्च 10, 2010

उदास चेहरे

उदासी  का अपना एक परिवेश है - - - - -कालचक्र है - - - - - अपनी स्थितियाँ है - -  - - "उदास"  शब्द  कभी उदासी की जगह नहीं ले सकती  है - - -